मैंने उनसे कहा, जानते हो अगर मैं मुसलमान होती तो कैसी लगती?
वो बोले नहीं, जरा बताओ तो…
मैंने झट से गले में पड़े दुपट्टे से हिज़ाब बांध के उन्हें दिखाया तो वो समझ चुके थे कि जब रूह मज़हब की दीवारों को नहीं जानती तो ये मौहब्बत कैसे जान पायेगी।
आज हम दोनों साथ हैं, वो भी वहीं हैं और हम भी वहीं… बस ईद और दिवाली की दीवारें हमारे बीच में नहीं आती।