मौहब्बत कुछ और नहीं बस पाक रूह का तोहफा है। इन मौहब्बत कि इमारतों पे यूँ तालें ना लगाओ। कभी जात के, कभी उम् के, कभी कस्बों के, कभी पैसों के, कभी रंग के, कभी ढंग के, कभी खुद मौहब्बत के ही….
एक बार इस मौहब्बत में खुद कैद हो कर तो देखो, चाबी होगी नहीं हाथ में और ये तालें खुद-बे-खुद टूट जायेंगे।
यूँ कैद ना करो उन हज़ारों मोहब्बतों को जो पाक दिल में सारी चाबियाँ ले कर घूमते हैं। एक बार उड़ जाने दो उन सब मौहब्बतों को, फिर देखो हर घर में मौहब्बत के फरिश्ते नज़र आएंगे…
क्यूंकि मौहब्बत कुछ और नहीं बस पाक रूह का तोहफा है।